रविवार, 26 सितंबर 2010

उसने कहा था की चाहत बहुत है
हम आमने सामने रहें न रहें
बस दिल से एक दीदार ही बहुत है
क्या हुआ जो मिल न सके इस दफा 
दिलों में हमारे जगह भी बहुत है
kunalnitish@gmail.com

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

प्रेम

नदियों सा निर्बाध बहता रहा प्रेम
धारा में पत्ते तो गिरे बहुत पर रुक  न सका प्रेम
बंट गयी शाखाए अनवरत रहा प्रेम
बस समंदर को ढूंढता बढ़ता ही रहा प्रेम