भव..यूं तो होना ही भव है। कुछ भी...अच्छा और बुरा। ओलाचना और तारीफ। सब भव हो सकते हैं। देशवासियों से देश सत्ता, नियम, कायदे भी भव। कुछ न हो तो अशक्य...
रविवार, 26 सितंबर 2010
उसने कहा था की चाहत बहुत है
हम आमने सामने रहें न रहें
बस दिल से एक दीदार ही बहुत है
क्या हुआ जो मिल न सके इस दफा
दिलों में हमारे जगह भी बहुत है
kunalnitish@gmail.com
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