भव..यूं तो होना ही भव है। कुछ भी...अच्छा और बुरा। ओलाचना और तारीफ। सब भव हो सकते हैं। देशवासियों से देश सत्ता, नियम, कायदे भी भव। कुछ न हो तो अशक्य...
"नदियों सा निर्बाध बहता रहा प्रेमधारा में पत्ते तो गिरे बहुत पर रुक न सका प्रेमबंट गयी शाखाए अनवरत रहा प्रेमबस समंदर को ढूंढता बढ़ता ही रहा प्रेम"Waah... behatreen... likhte rahen zanab!..
"नदियों सा निर्बाध बहता रहा प्रेम
जवाब देंहटाएंधारा में पत्ते तो गिरे बहुत पर रुक न सका प्रेम
बंट गयी शाखाए अनवरत रहा प्रेम
बस समंदर को ढूंढता बढ़ता ही रहा प्रेम"
Waah... behatreen... likhte rahen zanab!..