उसने कहा था की चाहत बहुत है
हम आमने सामने रहें न रहें
बस दिल से एक दीदार ही बहुत है
क्या हुआ जो मिल न सके इस दफा
दिलों में हमारे जगह भी बहुत है
kunalnitish@gmail.com
भव
भव..यूं तो होना ही भव है। कुछ भी...अच्छा और बुरा। ओलाचना और तारीफ। सब भव हो सकते हैं। देशवासियों से देश सत्ता, नियम, कायदे भी भव। कुछ न हो तो अशक्य...
रविवार, 26 सितंबर 2010
गुरुवार, 2 सितंबर 2010
प्रेम
सोमवार, 23 अगस्त 2010
गुरुवार, 5 अगस्त 2010
ढूंढ़ रहा हूँ खुद को खुद में
वही शहर | वही लोग| फिर भी सब नया है | अनजाना सा | लगता है किसी को जानता ही नही| और ना ही मुझे कोई जानता | अपनी पहचान ढूंढने की कोशिश लगातार कर रहा हूँ | वही पहचान जो यहीं कहीं गुम हो गयी थी | जिस मुकाम तक पहुचने की ख्वाहिश थी | कई तिनके जोड़ कर सफलता की जिन सीढियों पर चढ़ा था | उसका स्वाद काफूर हो गया| फिर उसी जायके की ज़द्दोजहद में लगा हूँ | ढूंढ़ रहा हूँ उसे| सब कहते हैं थोडा सब्र करो| सब मिलेगा| उनकी सलाह और सांत्वना अच्छी लगती है | दिमाग कहता है वे ठीक कह रहे हैं| कुछ दिनों तो उनकी बातें याद रहतीं हैं | फिर दिल दिमाग पे हावी हो जाता है | सब एक झटके में वापस पाने को ललक उठता हूँ | बेचैनी सी होती है | पूरा शहर सो जाता है| आंखों से नींद ओझल हो जाती है | वो खाब जो खुली आँखों से देखे हैं बस उसे पूरे करने की योजनाओं में रात गुजर जाती है| फिर एक नई सुबह और फिर से खुद को ढूंढने की कवायदें| इन्सान हूँ| इंतजार कर सकता हूँ लेकिन लम्बा इंतजार नही| सब कुछ तेजी से पाने की इच्छा होती है | कहीं पढ़ा था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती | कोशिश तो कर रहा हूँ| एक समंदर में बिना किसी लाइफ boat के सहारे खुद पे यकीं रखकर बस चला जा रहा हूँ| उस वक़्त की तलाश में जो कभी मुझसे हार जायेगा|
- कुणाल किशोर
- कुणाल किशोर
निदा फाजली की ये लाइनें कितनी सही लगती हैं लाइफ में
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाये तो मिटटी है खो जाये तो सोना है
मिल जाये तो मिटटी है खो जाये तो सोना है
बुधवार, 4 अगस्त 2010
bashir sahab ki ye bat aksar hi yaad aa jati hai jab.....
maiN kab kahtaa huN vo acchaa bahut hai
magar us ne mujhe chaaha bahut hai
Khudaa is shah’r ko mahfuuz rakhe
ye bachhoN ki tarah haNstaa bahut hai
magar us ne mujhe chaaha bahut hai
Khudaa is shah’r ko mahfuuz rakhe
ye bachhoN ki tarah haNstaa bahut hai
सोमवार, 2 अगस्त 2010
गुलाबी चूड़ियाँ
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
- BABA NAGARJUNA
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
- BABA NAGARJUNA
लज्जा
दौड़ है आधुनिकता की साडी में लज्जा आती है
जींस बुलाते आकर्षण साडी तो दूर भागती है
पिछड़ापन है गांवों मैं अगड़े तो शहर बसाते हैं
छोड़कर पिछली पीढ़ी को चौपाटी को जाते हैं
नैनों की नीलम घाटी जब रस घन से छा जाती है
कवी समर्पित हुए थे वो फिर भी लज्जा आ जाती है
दूध मलाई लस्सी से पिछड़ेपन की बू आती है
पेप्सी पिज्जा बर्गर से आधुनिकता आ जाती है
जींस बुलाते आकर्षण साडी तो दूर भागती है
पिछड़ापन है गांवों मैं अगड़े तो शहर बसाते हैं
छोड़कर पिछली पीढ़ी को चौपाटी को जाते हैं
नैनों की नीलम घाटी जब रस घन से छा जाती है
कवी समर्पित हुए थे वो फिर भी लज्जा आ जाती है
दूध मलाई लस्सी से पिछड़ेपन की बू आती है
पेप्सी पिज्जा बर्गर से आधुनिकता आ जाती है
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